मीडिया और अनुवाद का अंतः संबंध
मीडिया- हिंदी में जिसे माध्यम कहते हैं-
जनसंचार के समस्त साधनों का पर्याय-संचार शब्द 'चर' (चलना) धातु से बना है। निरंतर आगे
बढ़ती रहने वाली प्रक्रिया 'संचरण' कहलाती है। सूचनाओं के आदान-प्रदान की
समान भागीदारी करना संचार का उद्देश्य है। अंग्रेजी में 'कम्यूनिकेशन' शब्द लैटिन मूल 'Communis' से बना है जिसका अर्थ 'सामान्य बनाना', 'बांटना' संप्रेषित करना।
जनसंचार क्या है?: किसी भी तथ्य/सूचना/विचार/ज्ञान व
मनोरंजन को जनसामान्य तक पहुंचाना जनसंचार कहलाता है।
इतिहासः जब भाषा नहीं थी, इशारों, आवजों या
भित्तिचित्रों से सूचना का संप्रेषण होता था- भाषा के विकास के बाद, लेखन के
अभाव-में, मौखिक रुप से होता हैः ढिंढोरा पीटकर घोषणा की जाती थी-'वेद' को श्रुति कहते हैं- सुनकर सीखने की
विद्या-लेखन का विकास होने पर पशु-पक्षियों द्वारा कबूतर द्वारा संदेश भेजते था-
1470 में मुद्रम यंत्र के आविष्कार के बाद संचार सुलभ हो गया- गजट और समाचार पत्र
निकाले गए।
माघ्यमों के प्रमुख प्रकारः
(1)
पारंपरिक
माध्यम- मेले प्रदर्शनी में उद्धोषण, प्रवचन, कथा सुनाना, नाटक, लोकगीत, कठपुतली नृत्य। वर्तमान
समय की संगोष्ठी, सम्मेलन, रैली, विचार-अभियान, पारंपरिक माध्यमों के विकसित रुप।
(2)
मुद्रण
माध्यम या प्रिंट मीडिया-
समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, मुद्रित साहित्य (पर्चे, प्रचार सामग्री)
(3)
प्रसार
माध्यम या इलेक्ट्रानिक मीडिया-radio,
टेलीविजन, टेपरिकार्डर, फिल्म, वीडियों, इंटरनेट,ई-मेल, ब्लांग आदि। इनमें
पत्रिकाएं, अख़बार आदि दृश्य माध्यम है- जिनमें आंखे का प्रयोग होता है। रेडिया
श्रव्य माध्यम है, कानों से सुना जाता है। टेलीविजन, फिल्म आदि दृश्य-श्रव्य है।
विभिन्न माध्यमों का प्रकार्य
समाचार पत्र
जन-साधारण को सूचना देता है, उन्हें शिक्षित करता है और अधिकारों के प्रति जागरूक
बनाता है। जनतंत्र में इसकी अहम भूमिका-जनमत बनाता है, सरकार को बदल भी सकता है।
जनता में सांस्कृतिक चेतना लाना और समाज में मूल्यों की स्थापना करना इसका दायित्व
है।
नवीनता,
संक्षिप्तता, स्पष्टता और रोचकता समाचार की विशेषता है। समाचार पत्र के फीचर
विचारोत्तेजन और ज्ञानवर्धक होते है। विज्ञापनों से भी जानकारी मिलती है।
रेडियो तकनीकी
जनसंचार साधनों में सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। पंडितों से लेकर अनपढ़ लोग तक
रेडियों सुनते है- आज भी रेडियों शिक्षा, जानकारी और मनोरंजन का साधन है। इसमें
कृषि वार्ता, युवा-कार्यक्रम, महिलाओं, बच्चों और सैनिकों के लिए अलग-अलग
कार्यक्रम प्रसारित होते है- खेलकूद, मनोरंजन, मेले-त्यौहार पर विशेष कार्यक्रम
होते है।
फिल्म या चलचित्र
न केवल मनोरंजन का साधन है, उनमें संदेश भी मिलता है। समाज-सुधार, देशभक्ति की
प्रेरणा-मानव मूल्यों की स्थापना। वृत्तचित्र सूचना या संदेश प्रधान होते हैं।
टेलीविजन पिछली
सदी के 80 के दशक के बाद भारत में टेलीविजन छा गया है-दूरदर्शन जनसंचार का सशक्त
माध्यम है-इसके सौ से अधिक चैनलों में कुछ चौबीसों घंटे समाचार प्रसारित करते है।
अध्यात्म, संगीत, कार्टून, मनोरंजन आदि वे अलग-अलग चैनल है-विश्यविद्यालय और
स्कूली पाठ्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है-टी.वी में भाषा के साथ रंग प्रकाश और
ध्वनि का संयोजन रहता है।
मल्टीमीडिया या
बहुसंचारी व्यवस्था कंप्यूटर का यंत्र और उसमें इंटरनेट के तंत्र का संयोजन होने
के बाद सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्ण क्रांति आई है-विश्व-व्यापी
तंत्रजाल, जिसे डब्ल्यू-डब्ल्यू कहते है, एक अद्भूत चमत्कार ही है जिसके माध्यम से
विश्वभर में उपलब्ध सारी सामग्री कंप्यूटर के स्क्रीन पर खुल जाती है- जीवन का कोई
भी कोना अछूता नहीं है- ईमेल से पलक झपकते संदेश भेज सकते है- ई बिजनेश, ई
बैंकिंग, ई गवर्नेन्स-ब्लांक डायरी का परिष्कृत रुप है- यह अपना प्रकाशन-गृह है,
या अपना समाचार पत्र है। इसमें अपनी कविता, कहानी लेख या कुछ भी टाइप कर सकते है-
बिना मांगे ही आपकी रचना पर लोगों से टिप्पणी या प्रतिक्रिया मिल जाती है।
संचार माध्यम की भाषा-
समाचार माध्यमों
में प्रकाशित/प्रसारित हिंदी के पाँच रुप है-(1) बोलचाल की हिंदी (2) साहित्यिक
हिंदी (3) संकर या अंग्रेजी मिश्रित हिंदी (4) विभाषा या देहाती भाषा और (5)
हिंदीतर प्रदेशों या भारत के बाहर के देशों की हिंदी।
1.
बोलचाल
की हिंदी में तत्सम शब्दों की जगह उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग मिलता है। हिंदी
प्रदेश के लोगों में प्रचलित यह रुप उनके लिए सरल और सुगम है। कहानी, उपन्यास में
तथा सामान्य लेखों के अलावा संवादों में तथा रेडियों, टी.वी. आदि माध्यमों के
ग्रामीण कार्यक्रमों में इसका प्रयोग होता है।
2.
साहित्यिक
हिंदी इसे परिनिष्ठित हिंदी भी कहते है। कहाना उपन्यासों की अपेक्षा उच्च स्तर के
साहित्य में, दर्शन आदि गंभीर विषयों में इसका प्रयोग मिलता है। संस्कृत के तत्सम
शब्दों और हिन्दी के परिनिष्ठित रुप का प्रयोग इसकी विशेषता है। साहित्यिक हिंदी
में पद लालित्य के साथ रचनाधर्मिता पाई जाती है। दूरदर्शन के रामायण, महाभारत,
चाणक्य और धारावाहिकों में इसका प्रयोग देखा जा सकता है।
3.
संकर
भाषा इसे हिग्लिंश कहना ज्यादा सही है। हिन्दी में कोई समाचार या विवरण देते समय
अनावश्यक रुप से अंग्रेजी शब्दों को बीच-बीच में मिलाने की प्रवृत्ति रेडियों और
टी.वी. के चैनलों में पाई जाती है। कुछ अखबारों में भी इस तरह की भाषा का प्रयोग
मिलता है। इससे भाषा का स्वाभाविक सौदर्भ नष्ट होता है और अपसंस्कृति फैलती है।
उदाहरण के लिए 'कैंपस
में प्रोफेशनल कोर्स शुरु',
'प्लेसमेंट का आफर', 'चार्म समाप्त' आदि।
4.
विभाषा
या स्थानीय बोलियां- जब ग्रामीण क्षेत्र के लिए कोई कार्यक्रम प्रसारित होता है,
या कोई लोककथा या वार्ता सुनाई जाती है तब उस परिवेश में स्थानीय विभाषा या बोली
के शब्दों और मुहावरों का प्रयोग वांछनीय होता है। ऐसा प्रयोग उस माहौल में सहज
सुंदर लगता है। इससे दर्शकों/पाठकों/श्रोताओं को लगता है कि उन्हीं के लिए विशेष
रुप से यह कार्यक्रम आयोजित है।
5.
हिंदीत्तर
प्रदेशों में प्रयुक्त हिंदी- हिंदी भाषी प्रदेशों के अलावा भारत के कई राज्यों
में तथा अनेक विदेशी राष्ट्रों में कई प्रयोजनों के लिए हिंदी का व्यवहार हो रहा
है। कही व्यापार-वाणिज्य के लिए, कहीं संपर्क भाषा के रुप में, कहीं साहित्य के
अध्ययन के लिए तो कहीं मातृभाषा के रुप में उच्चारण,वर्तनी और वाक्य रचना में मानक
भाषा से भिन्न इन रुपों में प्रादेशिक महक आती है जैसे मुंबईया हिंदी, मद्रासी
हिंदी। देश के बाहर मारिशस में यह क्रियोल है, जिली त्रिनिदाद व सूरिनाम में फिजी,
त्रिनी और सरनामी हिंदी कहलाती है।
मीडिया और अनुवाद
मीडिया के लिए
अनुवाद करना अपने आप में एक चुनौती है। पत्रकारिता में त्वरित अपेक्षित होती है।
समाचार एजेंसियों संवाददाओं और प्रेस विज्ञप्तियों से प्राप्त होने वाले समाचारों
को क्षण-क्षण में वांछित भाषा में अनुवाद करना होता है। कई बार कंप्यूटर के डाटा
बेस और ई मेल से सामग्री मिलती है। मौके पर ही सोचकर निर्णय लेना पड़ता है कि शब्दानुसार
किया जाए, भावानुवाद या सारानुवाद किया जाए। विषय वस्तु की महत्ता, समाचार में
उपलब्ध स्थान, पाठकों की रुचि आदि को नज़र में रखते हुए अनुवाद का स्वरुप तय करना
होता है।
हिंदी की जीवंतता
का बहुत बड़ा आधार उसकी मुहावरेदानी है- हर वाक्य में मुहावरों और लोकोक्तियों का
प्रयोग मिलता है। इससे समाचार चटपटा और रोचक बनता है-जैसे चेहरा लाल पीला हो गया,
मंसूबे ढेर हो गए, विपक्ष में चिल्लपों मचाई, योजनाएं ठंडे बस्ते में मामला खटाई
में पड गया, अनाप-शनाप खर्च आदि। धुऑधार, धांय-धांय, दनादन, अंधाधुंध जैसे शब्दों
से ध्वन्यात्मकता आती है। आवश्यकतानुसार देशज शब्दों के प्रयोग से भी भाषा चुटीली
बनती है जैसे-चीन्हा गया, लुंज-पुंज, तगड़ा झटका, औकात बता दी, कारगुजारी आदि।
रेडियों के लिए
अनुवाद करते समय वाक्य छोटे हों, सरल और सटीक शब्दों का प्रयोग हो। रेडियों के
श्रोता सभी प्रकार के लोग होते हैं- शहरी-ग्रामीण, पंडित-अनपढ़। शैली और शब्दावली
ऐसी हो तो साइकिल पर ट्रांजिस्टर सुनते हुए जाने वाला साधारण व्यक्ति भी स्पष्ट
रुप से स्पष्ट जाए। समाचार-पत्र में कोई खबर समझ में न आए तो दुबारा पढ़ सकते है,
रेडियों में सुने हुए समाचार को पुनः सुनना संभव नहीं होता।
अनुवाद में
विषयानुसार भाषा का प्रयोग होना चाहिए-ग्रामीणों और देहाती कार्यक्रमों में बोलचाल
की भाषा, उसमें स्थानीय बोली के शब्द भी आ सकते हैं। साहित्य और सांस्कृतिक
संदर्भों में साहित्यिक भाषा का प्रयोग हो। युवा कार्यक्रम या महिला कार्यक्रम में
प्रयुक्त भाषा शैली से बच्चों के कार्यक्रम की भाषा शैली अलग होनी चाहिए।
टेलीविजन में चित्र भी बोलते है, इसलिए
भाषा की भूमिका समिति होनी चाहिए। अनुवाद संक्षिप्त और सटीक हो उसमें फालतू शब्दों
का प्रयोग न हो।
लक्ष्य भाषा के
मुहावरों और लोकोक्तियों का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है, अनुवादक को लक्ष्य
भाषा की सभी प्रयुक्तियों का ज्ञान होना चाहिए। विषय-विशेष से संबंधित विशिष्ट
शब्दावली को प्रयुक्ति या रजिस्टर कहते है। उदाहरण के लिए बाजार संबंधी समाचारों
में काम आने वाली प्रयुक्तियां हैं-सोना उछला, चाँदी लुढ़की, चावल तेज, चीनी ढीली।
यदि कार्यालयीन साहित्य का अनुवाद कर रहे हों तो पारिभाषिक शब्दावली में दक्षता
आवश्यक है। इसमें संस्कृत के तस्सम शब्दों का प्रयोग अधिक रहता है जैसे-निलंबन
(सस्पेंशन), आबंटन (अलॉटमेंट), पारदर्शिता (ट्रान्सपेरन्सी), पदोन्नति (प्रोमोशन)
आदि।
मीडिया और अनुवाद का अंतः संबंध
मीडिया के सभी
क्षेत्रों में चाहे वह हिंदी/अंग्रेजी/भारतीय भाषा के समाचार हों चा चैनल हों, सभी
जगह अनुवाद अहम भूमिका निभाता है। अंग्रेजी अखबारों के संवाददाताओं को भी
समाचार-संकलन के दौरान, साक्षात्कार करते या भाषण की रिपोर्ट करते हुए, दुर्घटना
स्थल में जाकर स्टोरी बनाते हुए कई बार अनुवाद का सहारा लेना पड़ता है।
संवाददाताओं से लेकर संपादक तक सभी को किसी न किसी स्तर में अनुवाद करना ही पड़ता
है। सफल पत्रकर बनने के लिए पत्रकारिता के साथ अनुवाद में दक्ष होना आवश्यक है। फिल्मों
की कई भाषाओं में डबिंग अनुवाद के द्वारा ही होती है। गरज यह कि मीडिया का काम
अनुवाद के बिना नहीं चह सकता। मीडिया की तरह अनुवाद भी सर्वव्यापी है और दोनों में
गहरा अंत-संबंध है।
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